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कार्यशील पूंजी प्रबंधन क्या है, प्रकार और महत्व

by
admin
Posted on
May 23, 2024
Working Capital Management

कार्यशील पूंजी प्रबंधन से तात्पर्य यह है कि बिजनेस अपने-अपने चालू परिसंपत्तियों और चालू देनदारी पर निगरानी रखे ताकि कंपनी के दैनिक क्रियाकलाप अच्छे से चल सकें और वह अपना कर्ज समय पर चुका सके। सरल शब्दों में, कार्यशील पूंजी प्रबंधन एक बिजनेस का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है जो कि किसी भी बिजनेस को टिकाऊ और सफल बनाता है लेकिन छोटे उद्योग हमेशा कार्यशील पूंजी को बरकरार रखने में संघर्ष करते हैं, उनके पास सीमित संसाधन होते हैं और बहुत ही कम ऐसे अवसर आते हैं जिससे कि वह अपना फंड बचा सकें।

इस मार्गदर्शिका के जरिए आप यह जान पाएंगे कि कार्यशील पूंजी किसे कहते हैं,कार्यशील पूंजी‌ का महत्व क्या है और इसके अंतर्गत आने वाली सभी संयोजन से व्यापार चुनौतियों को कैसे हल किया जा सकता है।

कार्यशील पूंजी का अर्थ

कार्यशील पूंजी कंपनी की कुल पूंजी का एक भाग होती है । यह पूंजी सभी बिजनेस को उनके छोटी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करती है और चालू परिसंपत्तियों का एक भाग होती है । इससे यह पता चलता है कि कंपनी अपने छोटे समय की देनदारी और दैनिक क्रियाकलापों के खर्चों का किस प्रकार से प्रबधन कर सकती है।

कार्यशील पूंजी प्रबंधन क्या है

कार्यशील पूंजी प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य किसी कंपनी के नकदी प्रवाह को बनाए रखना होता है जिससे कि वह अपने अल्पकालिक उधार और उपार्जित देनदारी को सुचारू रूप से चला सके। यह एक कंपनी के चालू परिसंपत्तियों और चालू देनदारी के बीच के अंतर से संबंधित है।

चालू परिसंपत्तियों में वह सब कुछ आता है जिसे कोई भी बिजनेस 12 महीने के अंदर नकद में परिवर्तित कर सकता है। इसमें कंपनी की अत्यधिक तरल परिसंपत्तियां शामिल की जाती हैं जैसे नकद, इन्वेंटरी अल्पकालीन निवेश, और प्राप्त खाता। वहीं दूसरी ओर, चालू देनदारी का तात्पर्य उन दिनदारियों से है जिन्हें किसी भी कंपनी को 12 महीने के भीतर पूरा करना है। इनमें अल्पकालिक उधार, लंबे समय के उधार और दैनिक खर्चो की देनदारियां शामिल हैं। 

किसी भी कंपनी को कार्यशील पूंजी का प्रबंध करना बहुत आवश्यक होता है। स्टॉक को सप्लायर से लोन पर लिया जाता है और कभी-कभी ग्राहकों को भी उत्पाद क्रेडिट पर बेचा जाता है जिससे कि कुछ देनदारी खाते और प्राप्त खाते कंपनी को मिलते हैं। जो कैश ग्राहकों से प्राप्त होता है उसे सप्लायर का लोन चुकाने में उपयोग किया जाता है। इस तरीके से कंपनी में फंड का प्रवाह चलता है। यह नकदी प्रवाह सुचारू रूप से तभी चलता है जब कार्यशील पूंजी का प्रबंध सही हो।

कार्यशील पूंजी के प्रकार

कार्यशील पूंजी के प्रकार निम्नलिखित हैं

1. अस्थाई कार्यशील पूंजी

अस्थाई कार्यशील पूंजी की जरूरत किसी भी व्यवसाय को साल के कुछ विशिष्ट अवसरों पर पड़ती है। यह आवश्यकता केवल बहुत थोड़ी समय के लिए और अस्थाई होती है। इसके अलावा यह व्यापार के आंतरिक क्रियाकलापों और बाहरी बाजार की परिस्थितियों से प्रभावित होती है। इस प्रकार की कार्यशील पूंजी की सबसे अधिक विशेषता यह होती है कि इसका पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है। अगर किसी भी व्यवसाय को अस्थाई कार्यशील पूंजी के लिए ऋण लेने की आवश्यकता पड़े तो वह ऋण केवल अल्पकालीन ऋण होगा। जैसे ही व्यवसाय में नकदी का प्रवाह शुरू होगा उद्यमी उस अल्पकालिक ऋण को चुकाने में भी सक्षम हो जाएगा। अस्थाई कार्यशील पूंजी का उदाहरण दिवाली के मौसम में मिलता है। 

2. स्थाई कार्यशील पूंजी

अस्थाई कार्यशील पूंजी के विपरीत स्थाई कार्यशील पूंजी किसी भी व्यवसाय को बिना किसी अवरोध के सुचारू रूप से चलाने के लिए हमेशा उपयोग में आती है । यह सीमित समय के लिए जरूरी नहीं होती बल्कि इसकी जरूरत एक व्यवसाय को भुगतान करने के लिए हमेशा पड़ती है। कोई भी उद्यमी एक न्यूनतम स्थाई कार्यशील पूंजी चालू परिसंपत्तियों में अपने पास रखता है जिससे कि वह आने वाली चुनौतियां का सामना कर सके। जब किसी भी बिजनेस के खर्चे बढ़ते हैं और आगे वृद्धि होती है, उसके साथ ही उद्यमी अपने न्यूनतम स्थाई कार्यशील पूंजी सीमा को भी बढ़ा देता है। 

3. सकल कार्यशील पूंजी

सकल कार्यशील पूंजी का अर्थ है कि एक कंपनी के पास जितनी भी चालू परिसंपत्तियां होती है उन्हें वह 12 महीने के अंदर नकद में परिवर्तित कर सकता है । इसके अंदर बैंक बैलेंस, प्राप्त किए खाते, इन्वेंटरी, अल्पकालिक निवेश, बाजार सिक्योरिटीज, और नकद शामिल होता है। एक सकारात्मक कार्यशील पूंजी का सबसे बड़ा लक्षण यह है कि इसमें चालू परिसंपत्तियां चालू देनदारी से अधिक हो। अगर ऐसा होता है तो इसका मतलब यह है कि कंपनी के पास दैनिक खर्चों और वृद्धि में निवेश करने के लिए पर्याप्त फंड है। इसके विपरीत, अगर कंपनी की चालू देनदारियां चालू परिसंपत्तियों से अधिक हैं तो यह किसी भी व्यवसाय के लिए एक नकारात्मक संकेत होता है क्योंकि इससे एक व्यवसाय कर्ज में डूब जाता है । उसके पास ऋणदाताओं को चुकाने के लिए पर्याप्त फंड नहीं होता है। 

4. शुद्ध कार्यशील पूंजी

शुद्ध कार्यशील पूंजी का तात्पर्य एक कंपनी के चालू परिसंपत्तियों और चालू देनदारी के अंतर से होता है। यह कंपनी की तरलता का मापदंड होता है और इसके जरिए वह अपने अल्पकालिक जरूरतों को पूरा करती है। यह अप्रत्यक्ष रूप से लंबे समय की परिसंपत्तियों द्वारा संचालित होती है और इसे कार्यशील पूंजी प्रबंधन के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

5. नियमित कार्यशील पूंजी

नियमित कार्यशील पूंजी का तात्पर्य उस फंड से होता है जिसे व्यवसाययों को अपने दैनिक क्रियाकलापों को सुचारू रूप से चलाने के लिए जरूरत पड़ती है। इसके  लिए उन्हें अधिक मात्रा में नकद की जरूरत, कर्मचारियों को वेतन देने के लिए और कच्चे माल को खरीदने के लिए पड़ती है। 

6. रिजर्व वर्किंग कैपिटल

व्यवसाय के दैनिक क्रियाकलापों को सुचारू रूप से चलाने के अलावा एक उद्यमी को कुछ पूंजी ऐसे चुनौती‌पूर्ण परिस्थितियों के लिए जमा करनी होती है जिसका कि पूर्वानुमान वर्तमान में लगाना मुश्किल है। ज्यादातर व्यवसाय इन्हें ऐसे खतरे जैसे बाढ़, प्राकृतिक आपदा, तूफान का प्रबंध करने के लिए रखते हैं। साथ ही यह बाजार के अप्रत्याशित खतरों जैसे मंदी का भी प्रबंधन करती है।

कार्यशील पूंजी प्रबंधन की सीमाएं

हालांकि यह माना जाता है कि कार्यशील पूंजी प्रबंधन किसी भी व्यवसाय को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए एक बहुत ही कारगर उपाय है। अगर इसका सुचारू रूप से पालन नहीं किया जाए तो व्यवसाय को कर्ज में डूबने में देर नहीं लगती लेकिन फिर भी इसकी कुछ सीमाएं होती हैं । केवल एक अच्छा कार्यशील पूंजी प्रबंधन यह तय नहीं करता कि एक व्यवसाय कितना सफल होगा। कार्यशील पूंजी प्रबंधन की सीमाओं को निम्नलिखित बिंदुओं से जानें 

  1. कार्यशील पूंजी प्रबंधन केवल चालू परिसंपत्तियों, चालू देनदारियों और वित्तीय फंड से संबंधित होता है। इसका मुख्य ध्यान केवल अल्पकालिक स्थिति पर केंद्रित होता है, ना कि दीर्घकालिक आर्थिक रणनीतियों पर।
  2. कार्यशील पूंजी के अलावा और भी कई कारक होते हैं जो कि व्यवसाय के लाभ को प्रेरित करते हैं जैसे बिक्री वृद्धि,राजस्व में सुधार और लागत को कम करना। बिना इन कारकों पर ध्यान दिए कार्यशील पूंजी प्रबंधन एक सफल रणनीति के रूप में साबित नहीं हो सकता।
  3. व्यवसाय के आंतरिक संचालन और बाहरी बाजार के कारक भी व्यवसाय को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं, जिसमें एक सफल कार्यशील पूंजी प्रबंधन रणनीति भी नकदी प्रवाह प्रबंधन करने में असफल होती है। 

छोटे उद्योगों के लिए कार्यशील पूंजी प्रबंधन का महत्व

हालांकि, वित्तीय चुनौतियों और सीमित संसाधनों की वजह से छोटे उद्योगों के लिए कार्यशील पूंजी प्रबंधन आसान नहीं होता है। निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर यह जानें कि छोटे उद्योगों को कार्यशील पूंजी प्रबंधन करना क्यों आवश्यक है:

1. नकदी प्रवाह प्रबंधन

छोटे उद्योगों के पास बाहर से अपने व्यवसाय को फाइनेंस करने के सीमित अवसर होते हैं । इसीलिए उनको आंतरिक नकदी प्रवाह प्रबंध करना बहुत आवश्यक है। उचित रूप से किया गया कार्यशील पूंजी प्रबंधन उनके व्यवसाय में नकदी तरलता को बनाए रखता है जिससे कि वह दैनिक खर्चों को सुचारू ढंग से चला पाते हैं और उन्हें दिवालिया होने का भी खतरा नहीं रहता है।

2. कार्यकारी कुशलता

सही रूप से किया गया कार्यशील पूंजी प्रबंधन छोटे उद्यमियों को उनकी कार्यकारी कुशलता में सक्षमता प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, वह इसके जरिए इन्वेंटरी के संतुलन से निजात पा सकते हैं। अपने सीमित संसाधनों का उपयोग करके सीमित इन्वेंटरी और सीमित पूंजी का उपयोग करने के लिए प्रेरित करता है।

3. सप्लायर से संबंध

अगर पूर्तिकर्ताओं को समय पर पेमेंट कर दी जाए तो उद्यमी उनके साथ में अच्छे संबंध बरकरार रखता है और साथ ही छूट भी प्राप्त कर सकता है। अच्छे तरीके से किया हुआ कार्यशील पूंजी प्रबंधन छोटे उद्यमियों को पूर्तिकर्ताओं के साथ में अच्छे संबंध रखने के लिए प्रेरित करता है और साथ ही पूर्तिकर्ताओं का अपने प्रति विश्वास बढ़ता है

4. ग्राहकों से संबंध

छोटे उद्यमियों को प्राप्त खातों को सुचारू रूप से चलाना अत्यंत आवश्यक होता है क्योंकि इसके जरिए वह अपने व्यवसाय में नकदी प्रवाह को बरकरार रखते हैं। प्राप्त खातों का अच्छे तरीके से रख रखाव उनके ग्राहकों के साथ संबंधों में और प्रगाड़ता विकसित करता है और इसके साथ ही कंपनी उच्च राजस्व का सपना भी साकार करती है।

5. खर्चों में कमी

अगर कार्यशील पूंजी का प्रबंध अच्छे से नहीं किया जाए तो छोटे उद्योगों को अल्पकालिक ऋण पर निर्भर रहना पड़ता है। वहीं एक सही कार्यशील पूंजी प्रबंधन छोटे उद्योगों को आत्मनिर्भर बनाता है। वह अधिक ब्याज पर लोन लेने के लिए प्रेरित नहीं होते हैं।

6. लचीलापन

छोटे उद्योग‌ कई बार बहुत तेजी से आंतरिक और बाहरी कारकों के आधार पर मांग और पूर्ति में परिवर्तन झेलते हैं । अगर पूंजी प्रबंधन सुचारू रूप से से किया जाए तो वह इन परिस्थितियों को सुचारू रूप से लाभोपार्जन करने के लिए उपयोग कर सकते हैं।

7. निवेश के अवसर

प्रभावी कार्यशील पूंजी प्रबंधन के जरिए छोटे उद्यमी अपने पास अच्छी खासी नकदी जमा कर पाते हैं जिससे कि वह अपने व्यवसाय में इस पूंजी को और निवेश कर पाएं और व्यवसाय वृद्धि के नए अवसर तलाश पाएं।

निष्कर्ष

इस मार्गदर्शिका के जरिए आप यह जान पाए होंगे कि एक कंपनी किस तरीके से प्रभावशाली कार्यशील पूंजी प्रबंधन के जरिए अपने व्यवसाय को गति प्रदान करती है । अगर चालू परिसंपत्तियों चालू देनदारी से अधिक हैं तभी पूंजी प्रबंधन प्रभावशाली कहा जाता है क्योंकि इसके जरिए कंपनी अपने खर्चों का भुगतान करने ऋण को चुकाने, सप्लायर को भुगतान करने, और वेतन वितरण में सक्षम होते हैं।

संबंधित प्रश्न

Q. 1 कार्यशील पूंजी कैसे मापी जाती है?

Ans: कार्यशील पूंजी वर्तमान परिसंपत्तियों और वर्तमान देनदारी के आधार पर नापी जाती है

Q. 2 वर्किंग कैपिटल का मतलब क्या होता है?

Ans: भी बिजनेस के दैनिक क्रियाकलापों को बिना किसी रूकावट के सुचारू रूप से चलने के लिए जो पूंजी उपयोग में आती है उसे वर्किंग कैपिटल कहते हैं।

Q. 3 कार्यशील पूंजी का उद्देश्य क्या है?

Ans: कार्यशील कार्यशील कंपनी का तात्पर्य उसे फंड से है जिसे एक व्यवसाय अपने अल्पकालिक खर्चों को उठाने के लिए रखता है। यह वर्तमान परिसंपत्तियों का हिस्सा होती है। एक प्रभावी कार्यशील पूंजी वह है जिसमें वर्तमान परिसंपत्तियों वर्तमान देनदारी से अधिक हों।

Q. 4 कार्यशील पूंजी के घटक क्या हैं?

Ans: प्राप्त खाते, देय खाते, नकदी, और सूची कार्यशील पूंजी के आवश्यक घटक कहे जाते हैं।

Q. 5 स्थाई पूंजी किसे कहते हैं?

Ans: स्थाई स्थाई पूंजी की आवश्यकता एक व्यवसाय को अपने दैनिक खर्चों को लंबे अंतराल तक के लिए चलाने के लिए पड़ती है। यह है अस्थाई पूंजी से भिन्न होती है।

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